Ratnakar Mishra

10/29/2010

सच का सामना

कितनो ने किया है अब तक सच का सामना
सच जो की कड़वा  हो सुनने मैं बुरा हो
सच का सामना इतना आसान नहीं
क्यों की जो दिखता है वो सच नहीं
सच तो चुप है जो किसी से बोलता नहीं
सच की चुप्पी ऐसी है की जैसे कुछ हो ही नहीं
सच  अनंत आकाश मैं फैला हुआ  है
बस दिल से उसे देखो और अपना लो

10/22/2010

क्यों तुम इतना याद आ रहे हो..

जब भी याद आता है तेरा चेहरा
हमारा दिल च्हुँक  उठता है
मगर अगले ही पल वो शांत सा हो  जाता है
मैं ने चाहा की तुम याद न आओ
मगर तेरे यादो ने ऐसा होने ना दिया
दिल  की बगिया अभी उजरी -उजरी सी है
तेरी हसी की यादो ने उस मैं फूल ही फूल खिला दिए
ये जमी बंज़र सी दिखती  है  तेरी यादो मैं
लेकिन तेरी आँखों की यादो ने इनमें भी सैलाब ला दिया
क्यों तुम इतना याद आ रहे हो ….

05/05/2010

आदमी ऐसा क्यों करता है

जब कुछ नहीं है तो भी  रोता है ..
जब कुछ मिल जाता है तब  भी रोता है
दुसरे को दुखी देख रोता है .
दुसरे को ख़ुश देख रोता है .
पैसे पाने और खोने पर रोता है
कुछ करने से पहेले रोता है
करने के बाद रोता है…
आदमी ऐसा क्यों करता है …

11/25/2009

आज कल ना जाने क्यों घर की याद आती है ….

Filed under: कविता — ratnakarmishra @ 5:58 pm
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कब वो बचपन बीता …नहीं याद है हम को ….
कब हमने जवानी मैं कदम रखा … नहीं याद है हम को ….
कब हमने अपनी जवानी खोइ नहीं याद है हम को ….
मगर  अब हमे क्यों याद आ रहा है  घर ….

10/30/2009

मित्र

जैसे- जैसे हम हमारे जीवन का रास्ता  तय करते है
मिलेंगे लोग हर रोज़  हमे नये..
अधिकांश केवल संयोग से मिले हैं.
लेकिन, कुछ को हमारे रास्ते में भेजा जाता है.

इन दोस्तों  में क्या खास है
कौन सा  बंधन हैं हम नहीं बता सकते हैं;

उनके प्यार की कोई सीमा नहीं होती है.
उनकी उपस्थिति हम मैं जोश  बढ़ाता है
उनका साथ  दिल में गर्मी महसूस कराता है.

यह प्यार जब एक दालान पर हो जाता है,
तब भी मील की दूरी पर हो जाती है.
और हां, इन दोस्तों को, भगवान हमारे रास्ते में भेजता है,
रहने के लिए हमारे पास हमेशा ..

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