सूर्य सा धधक
अग्नि सा तप
खुद को जला
और जल के
अग्निपंख सा निकल
तेज से समर को जीत
अहग को तू जला
धधक-धधक अग्नि सा
जल के अग्निपंख सा निकल
अदम्य साहस तुझ मैं भरा
ज्वाला सा तू जल रहा
कर दे राख उन को
जो तेरी आँखों मैं
देखने की हिम्मत करे
तू किसी से न डरे
तू किसी के सामने न झुके
शीश उनका दे गिरा
जो तेरी तरफ उठे
जल के अग्निपंख सा निकल